शाही ईदगाह-कृष्ण जन्मभूमि मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि शाही ईदगाह-कृष्ण जन्मभूमि मामले में हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश, जिसमें हिंदू पक्ष को अपनी याचिका में संशोधन करने और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को मामले में पक्षकार के रूप में जोड़ने की अनुमति दी गई थी, प्रथम दृष्टया वो सही है. सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की.
पीठ ने कहा कि एक बात स्पष्ट है, हिंदू वादियों द्वारा मूल याचिका में संशोधन की अनुमति दी जानी चाहिए. हिंदू पक्ष ने एक नया दावा करते हुए हाई कोर्ट का रुख किया था कि विवादित ढांचा एएसआई के तहत एक संरक्षित स्मारक है और पूजा स्थल संरक्षण अधिनियम भी ऐसे स्मारक पर लागू नहीं होगा. नतीजतन इसका उपयोग मस्जिद के रूप में नहीं किया जा सकता है. इसलिए उन्होंने मामले में एएसआई को एक पक्ष के रूप में जोड़ने का अनुरोध किया, जिसे इस साल मार्च में हाई कोर्ट ने अनुमति दी थी.
सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष ने की थी अपील
इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. शीर्ष अदालत ने 4 अप्रैल को मुस्लिम पक्ष की अपील पर हिंदू पक्षों को नोटिस जारी किया था. आज जब मामला सुनवाई के लिए आया तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष की दलील गलत लगती है. कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘यह दलील बिल्कुल गलत है. हाई कोर्ट को मुकदमे में पक्षकारों को जोड़ने के लिए संशोधन की अनुमति देनी चाहिए थी.
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को अपना लिखित बयान दाखिल करने के लिए समय दिया और सुनवाई स्थगित कर दी. हिंदू पक्ष ने शुरू में एएसआई को मामले में पक्षकार बनाने के लिए आवेदन के साथ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. वाद में संशोधन की भी मांग की. दावा किया कि मस्जिद को 1920 की अधिसूचना द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था. अधिसूचना प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम की धारा 3 के तहत जारी की गई थी.
मुस्लिम पक्ष ने किया था ये दावा
इस वजह से वर्तमान मामले में पूजा स्थल अधिनियम-1991 लागू नहीं होगा और इस स्थान का उपयोग मस्जिद के रूप में नहीं किया जा सकता है. पूजा स्थल अधिनियम सभी धार्मिक संरचनाओं की स्थिति की रक्षा करना चाहता है जैसा कि वो आजादी की तारीख (अगस्त 1947) पर थे. मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्षों द्वारा संशोधन याचिका का विरोध किया और दावा किया कि यह पूजा स्थल अधिनियम के आधार पर मुस्लिम पक्ष द्वारा किए गए बचाव को नकारने का एक प्रयास था.